अनफ्रीडम : आजादी की दरकार

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भारत जैसे आजाद मुल्क में इन दिनों ‘बैन’ यानी ‘प्रतिबंध’ शब्द अखबारों और समाचार चैनलों में खूब सुर्खियां बटोर रहा है. आम तौर पर प्रतिबंध का नाम सुनते ही किसी ‘कठमुल्ला’ और उसके उल-जुलूल फतवे का ध्यान आता है, मगर हमारे देश में इन दिनों सेंसर बोर्ड (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) और प्रतिबंध एक दूसरे का पर्याय बनते नजर आ रहे हैं.

सेंसर बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष लीला सैमसन के इस्तीफे के बाद उपजा विवाद लगातार जारी है. सैमसन के बाद पहलाज निहलानी अध्यक्ष बनाए गए. उसके बाद वह अपने निर्णयों के चलते लगातार चर्चा में बने हुए हैं. बहरहाल प्रतिबंध के कारण जो नई फिल्म इन दिनों सुर्खियों में है उसका नाम ‘अनफ्रीडम’ है, जिसे सेंसर बोर्ड के चंगुल से आजादी की दरकार है. फिल्म निर्देशक राज अमित कुमार की यह पहली फिल्म है. फिल्म के विषय पर आपत्ति होने की वजह से इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी नहीं दिखाई.

सेंसर बोर्ड का मानना है कि समलैंगिक संबंध और धार्मिक कट्टरता फिल्म का मूल विषय है,जो दर्शकों के लिए विवादित हो सकता है

सेंसर बोर्ड के इस रवैये को लेकर अमेरिका के फ्लोरिडा प्रांत में रह रहे निर्देशक राज अमित कुमार ने आंदोलन शुरू कर दिया है. ‘भारत में प्रतिबंधित’ लाइन को उन्होंने अपना हथियार बनाकर ऑनलाइन और सोशल मीडिया के दूसरे माध्यमों से इसका जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. फिल्म के पोस्टरों में भी ‘भारत में प्रतिबंधित’ लाइन को प्रमुखता से जगह दी गई है. वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते हुए राज फिल्म को भारत में प्रदर्शित कराने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. फिल्म के प्रदर्शन की तारीख 29 मई है. भारत में अगर फिल्म से प्रतिबंध नहीं हटता तो अमेरिका और कुछ दूसरे ऑनलाइन चैनलों पर इसे प्रदर्शित किया जाएगा.

इस बीच एक वीडियो के जरिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भरोसा करनेवाले लोगों से राज ने एक याचिका पर हस्ताक्षर करने की अपील की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित करते हुए यह हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है. वीडियो नौ अप्रैल को यूट्यूब पर अपलोड किया गया है. वीडियो में सेंसर बोर्ड के तौर तरीकों और कामकाज पर भी राज ने सवाल उठाए हैं. धार्मिक कट्टरता और समलैंगिकता के मुद्दे को उठाती यह फिल्म दो शहरों में घटी अलग-अलग घटनाओं पर आधारित है. अनफ्रीडम का वितरण नई कंपनी डार्क फ्रेम्स कर रही है. यह गैर-बॉलीवुड भारतीय सिनेमा को उत्तर अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों तक सिनेमाघरों और डिजिटल चैनलों के माध्यम से पहुंचाने का काम करती है. इस संस्था का निर्माण भी राज ने किया है.

सेंसर बोर्ड की पुनरीक्षण कमेटी ने राज से फिल्म के कुछ दृश्यों को हटाने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने इस प्रस्ताव को सूचना और प्रसारण अपीलीय न्यायाधिकरण में चुनौती दी थी. इसके जवाब में अधिकारियों ने भारत में फिल्म के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दी. बोर्ड का मानना है कि समलैंगिक संबंध और धार्मिक कट्टरता फिल्म का मूल विषय है जो आम दर्शकों के लिए विवादित हो सकता है. बहरहाल राज अमित कुमार इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में अपील करने के लिए अपने वकीलों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं.

फिल्म में विक्टर बनर्जी और आदिल हुसैन प्रमुख भूमिकाओं में नजर आएंगे. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हरि नायर फिल्म के सिनेमैटोग्राफर हैं और साउंड डिजायन ऑस्कर पुरकार विजेता रसूल पूकुटी ने किया है. यह फिल्म न्यूयॉर्क और दिल्ली में घटी दो घटनाओं पर आधारित है. पहली कहानी में दिखाया गया है कि किस तरह से एक आतंकवादी, उदारवादी मुस्लिम विद्वान को चुप कराने के लिए उसका अपहरण कर लेता है. वहीं दूसरी कहानी समलैंगिकता के मुद्दे को दर्शाती है. यह एक युवती की कहानी है, जिसका पिता उस पर शादी के लिए दबाव बनाता है. वह एक दूसरी युवती से प्यार करती है और घर छोड़ देती है. परिस्थितिवश फिल्म के दोनों मुख्य किरदार एक-दूसरे के सामने होते हैं और अपनी पहचान, अस्तित्व और प्यार की खातिर संघर्ष करते हैं.

ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड में पहली बार धार्मिक कट्टरता और समलैंगिता पर कोई फिल्म बन रही है. इससे पहले भी ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं. ऐसे में इस फिल्म को लेकर उठाई गई सेंसर बोर्ड की आपत्ति उसकी मौजूदा कार्यप्रणाली पर संदेह पैदा करती है. बहरहाल राज की अगली फिल्म का नाम ‘अयोध्या’ है. इस फिल्म के बारे में हालांकि उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी लेकिन इसका नाम ही कई इशारे कर रहा है. अपनी लड़ाई जारी रखने की बात करते हुए राज बताते हैं, ‘पान पराग को लेकर तो बहुत लोग काम कर रहे हैं. तो हम कुछ ऐसा काम करें जो हमारे हिसाब से हमें लगता है कि जरूरी है. बाकी चुटकुले तो लोग सुना ही रहे हैं रोज.’

 

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